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ग़ज़ल ज़माना ख़ुद लुटेरा हैं और मुझको डांकू समझता है। बिना सच्चाई को जाने और परखे मुझे गुनेहगार समझता है।। यह कैसा कानून है अंधा जो सुनी सुनाई ...